व्यस्त रहें मस्त रहें मानसिक स्वास्थ्य संवर्धन का मूल मंत्र है
डॉ मनोज कुमार तिवारी
वरिष्ठ परामर्शदाता
ए आर टी सेंटर, आई एम एस बीएचयू, वाराणसी
व्यक्ति के जीवन में मानसिक स्वास्थ्य सबसे अधिक महत्वपूर्ण मुद्दा है मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति सभी सुख-सुविधाओं से संपन्न होने के बाद भी उनका उपयोग करने में सक्षम नहीं होता है । उसे संपूर्ण दुनिया निराशा पूर्ण एवं निरर्थक लगती है। दुनिया का हर पांचवां व्यक्ति अपने जीवन काल में कभी ना कभी मानसिक समस्या का सामना करता है। मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता लाने हेतु 1992 से हर वर्ष 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पूरी दुनिया में मनाया जाता है जिसका मुख्य उद्देश्य लोगों को मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करना है । विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) प्रतिवर्ष अलग-अलग विषयों (थीम) पर जागरूकता लाने का प्रयास करती है , 2017 में विषय था : कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य, 2018 में विषय था : बदलती दुनिया में नौजवान एवं मानसिक स्वास्थ्य जबकि इस वर्ष 2019 का थीम है : मानसिक स्वास्थ्य संवर्धन और आत्महत्या निवारण यह एक अहम विषय है क्योंकि खराब मानसिक स्वास्थ्य आत्महत्या के जोखिम कारकों में सबसे बड़ा कारक है। मानसिक रोग से ग्रसित व्यक्तियों में से 8.6% लोग आत्महत्या करते हैं । आत्महत्या करने वाले लोगों में से आधे लोग अवसाद से ग्रस्त होते हैं , मनोदशा विकार से ग्रस्त लोगों में आत्महत्या का खतरा 20 गुना ज्यादा बढ़ जाता है। व्यक्तित्व विकार से पीड़ित लोगों में से 14% लोग आत्महत्या करते हैं । विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान अनुसार दुनिया भर में हर 40 सेकेंड पर आत्महत्या के कारण एक व्यक्ति की मौत हो जाती है। सबसे चिंताजनक यह है कि आधुनिक समय में आत्महत्या की प्रवृत्ति छोटे बच्चों में भी अपना पांव पसार रही है और इसमें सबसे खतरनाक भूमिका टेलीविजन की है जो ऐसे कार्यक्रम दिखाता है जिसमें लोग आत्महत्या करते हैं ताकि उन्हें समस्याओं से मुक्ति मिल जाए, बच्चों में अनुकरण की प्रवृत्ति अधिक होती है और उन्हें अपने व्यवहारों के परिणामों का भी ज्ञान नहीं होता इसलिए वे जैसा टेलीविजन पर देखते हैं वैसा ही प्रयास करते हैं ।
मानसिक अस्वस्थ व्यक्ति के लक्षण:
# अपने आप में खोए रहना जैसे खुद से बातें करना व मुस्कुराना ।
# अकेले रहना अधिक पसंद करना ।
# मनोदशा में बहुत जल्दी-जल्दी परिवर्तन होना ।
# परिस्थिति के अनुसार व्यवहार करने में असमर्थ होना ।
# संबंधों का निर्वहन करने में असमर्थ होना ।
# काल्पनिक दुनिया में खोए रहना ।
# नशे का अत्यधिक प्रयोग करना।
# दवाओं का दुरुपयोग करना ।
# मतिभ्रम होना (अपना नाम, पता, समय, दिन व दिशा इत्यादि बताने में कठिनाई महसूस करना) # बहुत अधिक निराशावादी होना # दूसरों से दुर्व्यवहार एवं मारपीट करना ।
# नींद एवं भूख में भारी कमी महसूस करना ।
# आत्मघाती विचार आना या आत्मघाती व्यवहार करना ।
# किसी भी काम के लिए हमेशा अपनी ही गलती महसूस करना
# हमेशा आत्मग्लानि से दुखी रहना।
# अपने रुचि एवं आनंददायक कार्यों में भी अरुचि प्रदर्शित करना ।
किसी भी व्यक्ति में उपर्युक्त लक्षण दिखाई पड़े तथा यह लक्षण कुछ समय अवधि तक बने रहे तो उसे तुरंत प्रशिक्षित मनोवैज्ञानिकों से परामर्श लेकर उचित चिकित्सा लेनी चाहिए ताकि गंभीर दुष्परिणामों से बच सके ।
मानसिक अस्वस्थता के कारण:
व्यक्ति के मानसिक रूप से अस्वस्थ होने के अनेकों कारण है, जिनमें से प्रमुख कारणों का बिंदुवार विवरण निम्नलिखित है:
# आनुवंशिकता
# गर्भावस्था के कारण
# मस्तिष्क में रासायनिक असंतुलन
# मनोवैज्ञानिक कारण
# पारिवारिक विवाद
# मानसिक आघात
# सामाजिक कारण
अनुवांशिक कारण:
शोधों से यह संकेत मिलता है कि जिन व्यक्तियों में मानसिक समस्या होती है, उनके माता-पिता, भाई-बहन या उनके सगे संबंधियों में भी उसी तरह की समस्या पहले हो चुकी होती है या रहती है । ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि कुछ जीन व्यक्ति में मानसिक समस्याओं के खतरे को बढ़ा देते हैं जिसके कारण उनका मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ जाता है।
गर्भावस्था के कारण :
गर्भवती महिला यदि नशे का सेवन करती है तो उसका प्रभाव भी उसके बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। गर्भावस्था में महिला लगातार उच्च स्तर की सांबेगिक तनाव में रहती है तो भी यह देखा गया है कि उसके बच्चे में मानसिक समस्याएं अधिक होने की संभावना बनी रहती है ।
मस्तिष्क में रासायनिक असंतुलन:
अत्यधिक दवाओं व नशे के प्रयोग, लंबे समय तक उच्च तनाव के बने रहने पर, गंभीर बीमारी व गंभीर संक्रमण के कारण मस्तिष्क में जैविक एवं रासायनिक परिवर्तन होने से व्यक्ति मानसिक रूप से अस्वस्थ हो जाता है । हारमोंस के असंतुलन के कारण भी अनेक मानसिक समस्याएं उत्पन्न होती हैं।
मनोवैज्ञानिक कारण :
जीवन के नकारात्मक अनुभव भी व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं । प्रेम में असफल होना, परीक्षा में बार-बार असफल होना, अत्यधिक आर्थिक परेशानियां, मानसिक दबाव, लंबे समय तक बने रहने वाला उच्च स्तर का तनाव, लैंगिक एवं शारीरिक शोषण का शिकार होना, कम उम्र में माता – पिता की मृत्यु हो जाना, असाध्य रोग से ग्रसित होना, ऐसी समस्याओं से घिर जाना जिससे छुटकारा पाने का कोई भी उपाय ना हो और ना ही ऐसा कोई व्यक्ति हो जिसकी मदद से उसे हल किया जा सके। ऐसी स्थितियां व्यक्ति में मानसिक समस्याएं उत्पन्न होने के लिए उत्तरदायी होती हैं ।
पारिवारिक कलह : पारिवारिक समस्याएं भी मानसिक समस्याओं के लिए जिम्मेदार होती हैं। परिवार में ऐसे व्यक्ति की मृत्यु हो जाने पर जिस पर पूरे परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी हो। पति- पत्नी के बीच खराब संबंध, भाई – बहनों के बीच ईर्ष्यापूर्ण संबंध, माता- पिता का बच्चों के साथ अतार्किक एवं भेदभाव पूर्ण व्यवहार । व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं । पति – पत्नी के बीच तलाक की प्रक्रिया तनावपूर्ण एवं लंबे समय तक चलती है तो भी उनमेें मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं उत्पन्न होने की संभावना अधिक होती है ।
अच्छे मानसिक स्वास्थ्य के उपाय :
छोटी-छोटी सावधानियां व्यक्ति समय रहते उपयोग करें तो वह मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से बचा रह सकता है । प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं :
# संवेग पर नियंत्रण रखना सीखना और उसे धनात्मक कार्यों में पारित करने की क्षमता विकसित करना
# व्यर्थ की चिंताओं से दूर रहना # छोटी छोटी नकारात्मक घटनाओं से अधिक व्यथित ना होना
# वास्तविकता को स्वीकार करके आगे बढ़ने का प्रयास करना
# अपनी क्षमताओं का सही आकलन करके उसी के अनुरूप अपने लक्ष्यों का निर्धारण करना # अपने रुचि एवं शौक के लिए भी पर्याप्त समय एवं संसाधन उपलब्ध कराना
# अपने पर विश्वास बनाए रखना # दूसरों का तथा दूसरे के विचारों का सम्मान करना
# प्रसन्न चित्त रहने का प्रयास करना
#अपने दिनचर्या को नियमित रखना
# कार्यों को योजना एवं समयबध्द ढंग से करने का प्रयत्न करना ।
# नियमित योग व ध्यान का अभ्यास करना
# परिवार के साथ गुणवत्तापूर्ण समय व्यतीत करें
# सामाजिक क्रियाकलापों में भी सहभागिता करते रहें
# यदि ऐसे व्यवसाय में है जिसमें आपकी रुचि नहीं है तो उसे बदलने का प्रयास करें
# अपने कार्य को महत्वपूर्ण समझ कर करें
# अनावश्यक रूप से किसी से अपनी तुलना न करें
# अपने अच्छे कार्यों की प्रशंसा करें व स्वयं को भी पुनर्बलन दें
# उपलब्ध संसाधनों का सदुपयोग करते हुए संतुष्ट रहें
# जो बात आपको परेशान कर रही हो उसे अपने मित्र, परिवार के सदस्यों एवं रिश्तेदारों से साझा करें ।
उपयुक्त उपायों को अपनाकर व्यक्ति मानसिक समस्याओं से बच सकता है किंतु उपयुक्त उपायों को अपनाने के बाद भी समस्या बनी रहती है तोे तुरंत प्रशिक्षित मनोवैज्ञानिक परामर्शदाता से परामर्श लेना चाहिए क्योंकि चिकित्सा में जितनी देरी होगी समस्या उतनी ही जटिल होती जाएगी तथा उसका उपचार उतना ही खर्चीला, कठिन एवं लंबा होता चला जाएगा ।
मानसिक समस्याओं का उपचार :
मानसिक समस्याएंं अनेक प्रकार की होती हैं तथा उनकी गंभीरता भी अलग-अलग व्यक्तियों में अलग-अलग स्तर की होती है। किसी भी उपचार का निर्णय मानसिक समस्या के प्रकार एवं उसकी गंभीरता के अनुसार किया जाता है :
अस्पताल में भर्ती करके उपचार :
जिन व्यक्तियों में मानसिक समस्या गंभीर स्तर की होती है उनका उपचार अस्पताल में भर्ती करके किया जाता है खासतौर से जिन रोगियों में मतिभ्रम, आत्मघाती विचार एवं व्यवहार, नींद बिल्कुल न आना, खाना बिल्कुल ना खाना, अपने संवेगों को बिल्कुल नियंत्रित करने में असमर्थ हो जाना, वास्तविकता से संबंध विच्छेद हो जाना । ऐसे लोगों को अस्पताल में भर्ती करके विभिन्न चिकित्सा उपायों से ईलाज किया जाता है ताकि व्यक्ति जल्दी से जल्दी ठीक हो सके।
मनोचिकित्सा :
अलग अलग मानसिक समस्याओं के लिए अलग-अलग मनोचिकित्सा का उपयोग किया जाता है :
व्यक्तिगत मनोचिकित्सा :
इसमें ऐसे उपाय विकसित करने में रोगी की सहायता की जाती है ताकि वे अपने अतार्किक संवेगों एवं समस्याओं से स्वयं निपटने में सक्षम हो सकें। व्यक्तिगत मनोचिकित्सा अत्यंत प्रभावशाली होती है क्योंकि इसमें व्यक्ति विशेष की समस्या एवं उसकी क्षमताओं का आकलन करके समस्याओं से निपटने के उपायों का निर्माण किया जाता है।
सामूहिक मनोचिकित्सा :
इसमें एक ही जैसी समस्याओं वाले व्यक्तियों का चिकित्सा एक साथ किया जाता है इससे कम समय में अधिक लोगों की चिकित्सा की जा सकती है । समूह में चिकित्सा होने पर उनका मनोबल बढता है उन्हें लगता है कि ऐसी समस्या केवल ही नहीं है बल्कि और लोगों की भी है जिससे उनके स्वस्थ होने की गति एवं संभावना बढ़ जाती है ।
परिवार मनोचिकित्सा : पारिवारिक कारणों से होने वाले मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के निराकरण में यह एक अत्यंत उपयोगी विधा है जिसमें रोगी के साथ-साथ उसके परिवार के सदस्यों को भी रोगी के समायोजन में सहयोग करने के लिए तैयार किया जाता है तथा पारिवारिक विवाद जैसी स्थितियों को परामर्श के माध्यम से दूर करा कर भी मानसिक समस्याओं में कमी लाने का प्रयास किया जाता है ।
संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा :
इसमें मनोचिकित्सक व्यक्ति के नकारात्मक व्यवहार एवं विचारों को सकारात्मक व्यवहार एवं विचारों में रूपांतरित करने का प्रयास करता है । किसी भी व्यक्ति का व्यवहार उसके विचारों पर निर्भर करता है इसलिए मनोवैज्ञानिक पहले व्यक्ति के विचारों में परिवर्तन करता है जिससे उसके व्यवहारों में स्वतः ही परिवर्तन हो जाता है ।
द्वंद्वात्मक व्यवहार चिकित्सा :
इसमें व्यक्ति के अमान्य व्यवहार एवं भावनाओं को स्वीकार एवं मान्य रूप में परिवर्तन परिवर्तित किए जाने का प्रयास किया जाता है तथा उनके बिगड़े हुए संबंधों को ठीक करने का प्रयास किया जाता है इसमें सेवार्थी को संबंधों को तार्किक रूप से निर्वहन करने हेतु मानसिक रूप से तैयार किया जाता है।
दवाओं द्वारा उपचार: मानसिक समस्याओं को ठीक करने के लिए अनेक दवा समूह का उपयोग किया जाता है जैसे- अवसाद रोधी दवाएं, चिंता रोधी दवाएं, मनोदशा स्थायीकरण दबाएं एवं मनोविकार रोधी दवाओं का प्रयोग किया जाता है। इन दवाओं का उपयोग सिर्फ मानसिक रोग विशेषज्ञ के सलाह पर ही किया जाना चाहिए, अन्यथा इसके गंभीर दुष्परिणाम भी हो सकते हैं ।
वैकल्पिक उपचार :
# नियमित योग ध्यान करना
# नियमित रिलैक्सेशन एक्सरसाइज करना
# संतुलित आहार लेना
आवश्यक होने पर उपरोक्त में से एक या एक से अधिक विधियों का उपयोग एक साथ भी किया जा सकता है ऊपर वर्णित लक्षणों के आते ही व्यक्ति को बताए गए सावधानियों को अपना लेने से काफी राहत होता है । उसे तनाव उत्पन्न करने वाले वातावरण और कारणों से भी दूर रहना चाहिए । उक्त सावधानियों के बाद भी समस्या कम ना होने पर तुरंत प्रशिक्षित मनोवैज्ञानिकों परामर्श दाताओं एवं मनोचिकित्सक से परामर्श एवं मनोचिकित्सा लेना चाहिए । गंभीर स्थिति होने पर मानसिक रोग विशेषज्ञ से संपर्क करके दवाई लेना चाहिए तथा अपने दिनचर्या में परिवर्तन करके भी मानसिक समस्याओं को टाला जा सकता है।
आंकड़ों के अनुसार 6.5% भारतीय जनसंख्या गंभीर मानसिक विकार से ग्रस्त है। विश्व में कुल मानसिक रोगियों में 15% रोगी भारत के हैं । भारत में 13 -17 वर्ष के किशोरो में से 7.3% मानसिक समस्या से ग्रस्त होते हैं जबकि शहरी क्षेत्र में यह आंकड़ा 13.5% के आसपास है। मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के निवारण में मनोवैज्ञानिक परामर्श की महत्वपूर्ण भूमिका है । सरकार को ऐसी नीति बनानी चाहिए जिससे समय-समय पर विद्यालयों में, कार्य स्थलों पर लोगों का एवं कामकाजी महिलाओं का मानसिक स्वास्थ्य परीक्षण किया जाए तथा उन्हें मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए जागरूक किया जाए तथा उसके उपायों से उन्हें अवगत कराया जाए । जिनका मानसिक स्वास्थ्य खराब हो उन्हें आवश्यकता अनुसार परामर्श, मनोचिकित्सा एवं दवाओं द्वारा उपचार से ठीक किया जाए तभी सच्चे अर्थों में हमारा भारत स्वस्थ भारत बनकर विकास करते हुए विश्व गुरु बनने में सफल होगा।