प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में अपने एक भाषण में कहा था उन्हें इस बात ने काफी प्रेरणा दी कि एक शख्स नाले की गैस से चूल्हा जलाता है। बीते शुक्रवार को वर्ल्ड बायोफ्यूल डे के मौके पर पीएम मोदी ने कई प्रेरणादायक बाते करते हुए जनता से ये बात साझा की थी कि रायपुर में एक शख्स चाय की दुकान ऐसे ही चलाता है। बता दें कि रायपुर में रहने वाले इस शख्स का नाम श्याम राव शिर्के है जो देसी स्टाइल में ऐसा उपकरण तैयार कर चूल्हा नाले की गैस से ही जलाता है।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!नालियों और नालों से निकलने वाली मीथेन गैस रसोई गैस की तर्ज पर उपयोग की जाती है, जिसका इस्तेमाल कर इसने नए तकनीक का अनूठा विचार दिया है। इस उपरकण के सहारे कोई भी गैस चूल्हा लगाकर मीथेन गैस का उपयोग खाना बनाने के लिए कर सकता है। श्याम राव शिर्के के इस प्रोजेक्ट की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तारीफ की थी। इस प्रोजेक्ट को श्याम राव शिर्के ने ग्लोबल पेटेंट भी कराया है। जल्द ही इसे रायपुर के कुछ चुनिंदा नालों और नालियों में स्थापित किया जाएगा।
कैसे बनाई मशीन?
आजकल रायपुर के चंगोराभाठा इलाके में रहने वाले 60 वर्षीय श्याम राव शिर्के का नाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जुबान पर है। शिर्के द्वारा बनाई गई इस मशीन में प्लास्टिक के तीन ड्रमों अथवा कंटेनर को आपस में जोड़ कर उसमें एक वॉल्व लगा दिया जाता है। ये तीनों कंटेनर नदी नाले या नालियों के ऊपर उस स्थान पर रखा जाता है, जहां से बदबूदार पानी गुजरता है गंदगी कंटेनर में समा ना जाए इसके लिए नीचे की ओर एक जाली लगाई जाती है।
क्या है मशीन का काम?
दरअसल इस मशीन को इस तर्ज पर फिट किया जाता है कि ड्रम अथवा कंटेनर में इकठ्ठा होने वाली गैस का इतना दबाव बन सके, जिससे वो पाइप लाइन के जरिए उस स्थान पर पहुंच जाए जहां रसोई गैस का चूल्हा रखा है। उनके मुताबिक कंटेनर में इकठ्ठा होने वाली गैस की मात्रा नदी नाले की लंबाई, चौड़ाई और गहराई पर निर्भर करती है। उनके मुताबिक रायपुर में जिस स्थान पर उन्होंने इस उपकरण को लगाया था उस घर में लगातार तीन चार माह तक एक दर्जन से ज्यादा व्यक्तियों का सुबह का नाश्ता, दोपहर और रात का भोजन बन जाया करता था।
कौन हैं श्याम राव शिर्के
श्याम राव शिर्के पेशेवर इंजीनियर नहीं हैं और ना ही उनके पास कोई इंजीनियरिंग की डिग्री है। वे मात्र 11वीं पास हैं। ये तकनीक उनकी आय का कोई विशेष साधन नहीं है। उनकी आजीविका मैकेनिकल कॉन्ट्रैक्टरशिप पर निर्भर है। हार्ट अटैक की वजह से वो अब पहले की तरह सक्रिय नहीं है लेकिन, इंजीनियरिंग इनोवेशन की धुन उनके सिर पर इस तरह सवार रहती है कि वो कोई ना कोई ऐसा उपकरण ईजाद करने में जुटे रहते हैं। आर्थिक स्थिति खराब होने के बावजूद श्याम राव शिर्के ने अपने इस हुनर को उम्र के इस पड़ाव में भी जीवित रखा।
चार साल पहले उन्होंने अपने इस प्रोजेक्ट को पूरा किया और पेटेंट करवाने का प्रयास किया। श्याम राव के मुताबिक, उन्हें इस बात की खुशी है कि उनका मॉडल पेटेंट हो चूका है और अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संज्ञान में भी आ चुका है। श्याम राव शिर्के के मुताबिक उनका यह प्रोजेक्ट वातावरण में फैलने वाली बदबू ही नहीं बल्कि कई तरह के कीट पतंगों को पैदा होने से भी रोकेगा। छत्तीसगढ़ काउंसिल ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी ने इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए अपनी तैयारी भी शुरू कर दी है।