कबीर की निर्वाण स्थली मगहर तब भी अभिशप्त थी और आज भी है, ये हैं कारण

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एक तरफ जहां काशी में गंगा अपनी दुर्दशा पर रो रही है तो वहीं आज आमी भी प्रदूषण के चलते अपने अस्तित्व को खोने के कगार पर है. मगहर के लोगों को इस बात का भी कष्ट है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संत कबीर के जीवन के हर पहलू की चर्चा तो की लेकिन वे आमी को भूल गए, जिसके किनारे कबीर ने निर्वाण प्राप्त किया था.

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वाराणसी: ऐतिहासिक और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गंगा किनारे बसी काशी में अपने शरीर का त्याग करने वले को मोक्ष की प्राप्ति होती है. लेकिन संत कबीर ने इसे चुनौती देते हुए प्रण किया था कि वे नरक माने जाने वाले आमी नदी के किनारे बसे मगहर में जाकर अपने शरीर का त्याग करेंगे.

हालांकि मगहर को नरक और अभिशप्त माने जाने के पीछे कोई एक ठोस कारण नहीं है, लेकिन जानकार इसकी व्याख्या अपने-अपने शोध के आधार पर करते हैं. कबीर का पूरा जीवन काशी और मगहर के बीच बीता और यही इन दोनों जगहों के बीच एक अटूट रिश्ता जोड़ता है.



इसके अलावा मगहर से होकर बहने वाली आमी भी घाघरा से होते हुए गंगा में जाकर मिलती है, जो कबीर के जीवन में काशी और मगहर को जोड़ने वाली दूसरी कड़ी है. एक तरफ जहां काशी में गंगा अपनी दुर्दशा पर रो रही है तो वहीं आज आमी भी प्रदूषण के चलते अपने अस्तित्व को खोने के कगार पर है.

मगहर के लोगों को इस बात का भी कष्ट है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संत कबीर के जीवन के हर पहलू की चर्चा तो की लेकिन वे आमी को भूल गए, जिसके किनारे कबीर ने निर्वाण प्राप्त किया था.



इन कारणों से माना जाता था मगहर को नरक

वाराणसी से लगभग 200 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मगहर संत कबीर के निर्वाण स्थली के रूप में जाना जाता है. एक समय यह माना जाता था कि मगहर में मरने वाले व्यक्ति को मोक्ष नहीं मिलता और उसका अगला जन्म गह्दे के रूप में होता है.

वाराणसी स्थित संत कबीर मूल गादी कबीरचौरा मठ के महंत विवेक दास बताते हैं कि मगहर को नरक माने जाने का कारण भगवान बुद्ध से जुड़ा है. उन्होंने बताया कि भगवन बुद्ध ने राजपाट त्यागने के बाद मगहर के पास आकर अपने केश त्यागे थे. इसके चलते इस जगह की महत्ता बढ़ने लगी.

इसे देखते हुए तब की ब्राह्मणवादी व्यवस्था के लम्बरदारों ने कहना शुरू कर दिया कि मगहर नरक का द्वारा है और जो यहां शरीर त्यागेगा, उसे मोक्ष नहीं मिलेगा. इसी को चुनौती देते हुए कबीर अपने जीवन के अंतिम समय में मगहर जाकर बस गए और वहीं निर्वाण प्राप्त किया.

बीएचयू के प्रोफेसर और काशी के इतिहास के जानकार राणा पीबी सिंह भी कहते हैं भारत में ऐसी कई जगहें मिल जाएंगी, जिन्हें किंवदन्तियों के आधार पर अशुभ या नरक का द्वारा माना गया है, उनमें से मगहर भी एक जगह है. वे बताते हैं कि कबीर ने भी इसे एक दोहे के जरिए चुनौती दी, “क्या काशी, क्या ऊसर मगहर, जो पै राम बस मोरा. जो कबीर काशी मरे, रामहीं कौन निहोरा… और मगहर चले गए.

मगहर के बारे में बताते हुए प्रोफेसर सिंह कहते हैं कि मगहर ‘मार्ग-हर’ का अपभ्रंश है. उस समय इस इलाके से होकर बौद्ध धर्म के अनुयायी जब भगवन बुद्ध के जीवन से जुड़े स्थानों की तीर्थयात्रा के लिए निकलते थे तो उन्हें इसी जगह पर डाकू और लुटेरे लूट लेते थे. इसके लिए वे हत्या करने से भी गुरेज न करते थे. इसके चलते मगहर बदनाम हो गया था.



मगहर में आमी ने कबीर के लिए बदला रास्ता

मगहर में संत कबीर की समाधि को छूकर बहाने वाली आमी नदी के बारे में भी बहुत से किस्से हैं . इस बारे में आमी बचाओ मंच के अगुवा विश्व विजय सिंह बताते हैं कि नदियां सर्पाकार रास्ता बनाते हुए चलती हैं. लेकिन यहां समाधि स्थल को छूकर आमी के बहने के पीछे संत कबीर की ही महिमा मानी जाती है.

कहा जाता है कि जब सन1515 में संत कबीर मगहर पहुंचे तो यहां भयंकर अकाल पड़ा था. यहां के लोगों ने जब उनसे गुजारिश की तो उन्होंने तप किया और जमकर बारिश हुई.

इसके बाद लोगों ने संत कबीर से कहा कि यह स्थायी समाधान नहीं है और इलाके में सूखे की समस्या लगातार बनी रहेगी. इस पर संत कबीर ने आमी नदी का आह्वान किया और उनके कुटी स्थल से काफी दूर बह रही आमी ने अपना रास्ता बदला दिया और कुटी के बगल से बहने लगी.
आज भी अभिशप्त है इलाका

विश्व विजय सिंह पिछले एक दशक से आमी के अस्तित्व को बचाने की लडाई लड़ रहे हैं. वे प्रधानमंत्री के मगहर आगमन से खुश तो हैं लेकिन उनके आमी का जिक्र न करने से निराश भी हैं. वे कहते हैं कि चार जिलों से होकर बहने वाली आमी नदी के संरक्षण के लिए नेशन ग्रीन ट्रिब्यूनल भी कई बार आदेश दे चुका है लेकिन अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है.

वे कहते हैं कि उनके द्वारा गठित आम बचाओ मंच के संरक्षक सीएम योगी आदित्यनाथ और मगहर में कबीर मठ के महंत विचार दास भी रहा चुके हैं. बावजूद इसके भी आजतक आमी के संरक्षण के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं. उन्होंने बताया कि आमी सिद्धार्थनगर जिले के डुमरियागंज के सिकहरा गांव से निकलती है.

नदी बस्ती, संत कबीर नगर होते हुए 102 किलोमीटर का सफ़र पूरा कर गोरखपुर में जाकर राप्ती नदी से मिल जाती है. इसके अलावा इस नदी के बीच में कई स्थानों पर प्राकृतिक सोते भी हैं, जो नदी के पानी को रिचार्ज करते रहते हैं. लेकिन बढ़ते प्रदूषण के चलते सोते बंद होते जा रहे हैं.

इसके अलावा बस्ती जिले में रुदौली सुगर मिल, मगहर में पेपर मिल, खलीलाबाद शहर का कचरा और गोरखपुर में इंडस्ट्रियल इलाके का कचरा आमी में छोड़ा जा रहा है, जिससे नदी प्रदूषित होकर काली पड़ चुकी है. वे कहते हैं कि जबतक यह कचरा नहीं रोका जाता, आमी को प्रदूषित होने से नहीं बचाया जा सकता है.



नहीं मिला एसटीपी (सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट) के लिए धन

विश्व विजय बताते हैं कि काफी संघर्ष के बाद के बाद गोरखपुर के गीडा में 35 एमएलडी के एसटीपी की स्थापना की स्वीकृति मिली. लेकिन इसके बावजूद इसके लिए आने वाली 115.25 करोड़ रूपये की लागत के लिए केन्द्र और राज्य सरकार ने फंड नहीं रीलिज किया है.

वे आरोप लगाते हैं कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का स्थानीय कार्यालय और स्थानीय प्रशासन सरकार को लगातार झूठी रिपोर्ट भेज रहा है और गुमराह कर रहा है. इसी प्रदूषण के चलते आमी के किनारे होने वाली गेहूं, तिलहन और दलहन की खेती के अलावा पशुपालन प्रभावित हो रहा है.

आमी का तटीय इलाका कभी पशुओं के चारागाह के तौर पर काम आता था. लेकिन प्रदूषण के चलते अब दुधारू पशु बीमार होने लगे हैं और इलाके में दूध का उत्पादन भी घट चुका है. वे कहते हैं कि भौतिक विकास के नाम पर फैलाए जा रहे प्रदूषण ने मगहर की गंगा (आमी) को खत्म कर दिया है.

उनका कहना है कि पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ संत कबीर के विचारों के सम्मान की बात कहते हैं. लेकिन आमी को प्रदूषण मुक्त किए बिना कबीर के प्रति उनका श्रद्धा व्यक्त करना बेमानी ही साबित होगा.