हर देश में भाषा के तीन रूप मिलते है-
(1) बोलियाँ (2) परिनिष्ठित भाषा (3) राष्ट्र्भाषा
(1) बोलियाँ :- जिन स्थानीय बोलियों का प्रयोग साधारण अपने समूह या घरों में करती है, उसे बोली (dialect) कहते है।
किसी भी देश में बोलियों की संख्या अनेक होती है। ये घास-पात की तरह अपने-आप जन्म लेती है और किसी क्षेत्र-विशेष में बोली जाती है। जैसे- भोजपुरी, मगही, अवधी, मराठी, तेलगु, इंग्लिश आदि।
(2) परिनिष्ठित भाषा :- यह व्याकरण से नियन्त्रित होती है। इसका प्रयोग शिक्षा, शासन और साहित्य में होता है। बोली को जब व्याकरण से परिष्कृत किया जाता है, तब वह परिनिष्ठित भाषा बन जाती है। खड़ीबोली कभी बोली थी, आज परिनिष्ठित भाषा बन गयी है, जिसका उपयोग भारत में सभी स्थानों पर होता है। जब भाषा व्यापक शक्ति ग्रहण कर लेती है, तब आगे चलकर राजनीतिक और सामाजिक शक्ति के आधार पर राजभाषा या राष्टभाषा का स्थान पा लेती है। ऐसी भाषा सभी सीमाओं को लाँघकर अधिक व्यापक और विस्तृत क्षेत्र में विचार-विनिमय का साधन बनकर सारे देश की भावात्मक एकता में सहायक होती है। भारत में पन्द्रह विकसित भाषाएँ है, पर हमारे देश के राष्ट्रीय नेताओं ने हिन्दी भाषा को ‘राष्ट्रभाषा’ (राजभाषा) का गौरव प्रदान किया है। इस प्रकार, हर देश की अपनी राष्ट्रभाषा है- रूस की रूसी, फ्रांस की फ्रांसीसी, जर्मनी की जर्मन, जापान की जापानी आदि।
(3) राष्ट्र्भाषा :- जब कोई भाषा किसी राष्ट्र के अधिकांश प्रदेशों के बहुमत द्वारा बोली व समझी जाती है, तो वह राष्टभाषा बन जाती है।
दूसरे शब्दों में- वह भाषा जो देश के अधिकतर निवासियों द्वारा प्रयोग में लाई जाती है, राष्ट्रभाषा कहलाती है।
सभी देशों की अपनी-अपनी राष्ट्रभाषा होती है; जैसे- अमरीका-अंग्रेजी, चीन-चीनी, जापान-जापानी, रूस-रूसी आदि।
भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी है। यह लगभग 70-75 प्रतिशत लोगों द्वारा प्रयोग में लाई जाती है।