Shared News By Anurag Gupta, ओन्लीमाईहैल्थ
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!बड़ों ही नहीं छोटे बच्चों को भी माइग्रेन हो सकता है। आमतौर पर छोटे बच्चों में सिरदर्द की समस्या को तनाव और कंप्टीशन का दबाव बढ़ाता है। जानें बच्चों में सिरदर्द या माइग्रेन का कारण, लक्षण और इलाज।
कुछ दर्द ऐसे होते है जिनपर कई बार हम ध्यान नहीं देते हैं, लेकिन जब वही दर्द बच्चों में होने लगे तो गंभीर रूप ले लेता हैं। सामान्य रूप से माइग्रेन की समस्या हमने बड़ों में सुनी है जब उन्हें भयंकर सिर दर्द होता हैं। लेकिन माइग्रेन आजकल छोटे बच्चों और युवाओं में भी पाया जाने लगा है। इसका प्रहार अब बच्चों के बीच भी होने लगा है और हाल ही में यह विद्यार्थियों और छोटे बच्चों में कई कारणों से बढ़ता जा रहा हैं। एक शोध के मुताबिक लगभग 10% स्कूल जाने वाले छोटे बच्चे माइग्रेन से ग्रस्त हैं। आधे से ज्यादा बच्चों को 12 साल से पहले माइग्रेन अटैक होता है।
माइग्रेन के लक्षण
माइग्रेन एक मस्तिष्क संबंधी बीमारी है, इसलिए सिर दर्द इसका एक प्रमुख लक्षण है। मगर इसके अलावा अन्य लक्षण भी हैं जैसे:-एक तरफा सिरदर्द, धकधकी होना, मतली, उल्टी, चक्कर आना, मूड में बदलाव, प्रकाश और ध्वनि में संवेदनशीलता आदि। बच्चों के बीच यह वयस्कों की तुलना में लंबे समय नहीं रहता, लेकिन यह एक बच्चे के सामान्य जीवन को बाधित करने के लिए काफी है। इसलिए डॉक्टर की जल्द ही सलाह ली जानी चाहिए। कई बच्चें सही से स्कूल में उपस्थित नहीं हो पाते है क्योंकि यह बच्चे अक्सर हर हफ्ते सिर दर्द से पीड़ित रहते है।
बच्चों में माइग्रेन का कारण
माइग्रेन के मुख्य प्रकारों में से एक क्रॉनिक डेली माइग्रेन है। किशोरों के बीच पूर्ण रूप से एक दिन में चार से अधिक घंटे तक दर्द रहना असामान्य है। सिरदर्द के अलावा माइग्रेन के अन्य बहुत से कारण है:- कम नींद माइग्रेन के विकास का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है और यदि यह कम और ज्यादा होने लगे तो समस्या शुरू होने लगती है। स्लीपिंग पैटर्न में पर्याप्त नींद नहीं होने या अशांति होने से माइग्रेन की शिकायत उत्पन्न हो सकती हैं। चाहे बच्चा हो या वयस्क पानी का सेवन दोनों के लिए जरूरी है। मौसम बदलने पर आप डिहाइड्रेट न हों इसलिए पर्याप्त पानी पीते रहें। एक्टिव और सेहतमंद रहने के लिए पूरे दिन में बच्चों को कम से कम तीन लीटर पानी पीने की जरूरत है, लेकिन इसका अच्छी तरह से पालन नहीं किया जाता और इसलिए डिहाइड्रेशन की समस्या हो सकती है। अंत में यह बुरे सिर दर्द जैसी समस्या को उत्पन्न कर देता है।
परीक्षा का दबाव, प्रतियोगिता और कई बार पारिवारिक समस्याओं के कारण बच्चों को तनाव और अवसाद से गुजरना पड़ता है। कई बच्चे अपने तनाव को व्यक्त नहीं कर पाते हैं। छिपाने के कारण उनके दिमाग पर और अधिक दबाव पड़ता है जिससे भंयकर दर्द होता है। आजकल बच्चे मोबाइल गेम्स, आईपैड, स्मार्ट फोन और तकनीक उपकरण का इस्तेमाल बहुत ज्यादा करते हैं, जो माइग्रेन को बढ़ा सकता है।
इसके अलावा मौसम के बदलते पर्यावरणीय कारकों के कारण और अन्य रोगों के कारण भी बच्चों के बीच माइग्रेन बढ़ सकता है। बच्चे टीवी स्क्रीन या कंप्यूटर के सामने ज्यादा समय व्यतीत करते है जो कि बहुत हानिकारक होता है क्योंकि चमक और झिलमिलाहट उनकी दृष्टि को प्रभावित करती है।
माइग्रेन को कैसे पहचानें
माइग्रेन को पहचान कर इसको आसानी से रोका जा सकता हैं। सिर दर्द इसका मुख्य लक्षण है। बाकी लक्षण कम दिख सकते हैं जैसे- अस्पष्टीकृत मतली, पेट में दर्द आदि। इसके अलावा बच्चों में कुछ ऐसे लक्षण भी हैं, जिसपर पैरेंट्स को ध्यान देना चाहिए जैसे- मिजाज, सुस्ती, सोते हुए चलने की आदत, खाने में कमी। यदि माता-पिता में से किसी एक को यह समस्या होती है, तो बच्चे को इसके होने की संभावना अधिक हो जाती है। माइग्रेन के लिए टेस्ट जैसे- ब्लड टेसट, ईईजी, न्यूरोइमेजिंग टेस्ट सिरदर्द के कारणों को जानने के लिए किए जाते हैं।
माइग्रेन का इलाज
आमतौर पर तीन प्रकार की पद्धति माइग्रेन के उपचार में प्रयोग किए जाते है। सबसे पहले एक्यूट उपचार जहां दवाओं से लक्षणों को राहत देने के लिए उपयोग किया जाता है। एक्यूट थैरेपी गंभीर होने से पहले सभी लक्षण को कम करती है। आमतौर पर यदि बच्चें को महीने में 3 से 4 बार अटैक आते है तो डॉक्टर के परामर्श किया जाना चाहिए। गंभीर माइग्रेन के उपचार में दवाओं का इस्तेमाल नहीं किया जाता हैं। इस उपचार में संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा, एक्यूपंक्चर, व्यायाम और उचित आराम और आहार से अटैक ट्रिगर से बचने में मददगार साबित होता है।