अमेरिका ने भारत को पिछले हफ्ते अपना विशेष रणनीतिक कारोबारी साझेदार देश (एसटीए-1) का दर्जा दिया है।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। भले ही चीन के विरोध की वजह से भारत का परमाणु आपूर्तिकर्ता देशों के संगठन परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) का सदस्य बनना संभव नहीं हो पा रहा है। लेकिन, अब भारत को इसकी दरकार भी नहीं है। इसकी वजह यह है कि अमेरिका ने भारत को पिछले हफ्ते अपना विशेष रणनीतिक कारोबारी साझेदार देश (एसटीए-1) का दर्जा दिया है। इसके बाद भारत बिना एनएसजी का सदस्य बने ही अमेरिका से वे सारे संवेदनशील हथियार व उच्च तकनीकी हासिल कर सकता है जो एनएसजी में शामिल होने के बाद हासिल करने की उम्मीद बनती। इसके बावजूद विदेश मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि भारत एनएसजी में शामिल होने की अपनी कोशिश जारी रखेगा।
विदेश मंत्रालय के अधिकारयों का कहना है कि अमेरिका के इस फैसले के बाद भारत को एनएसजी से बाहर रखने का कोई औचित्य नहीं है। क्योंकि अमेरिका एनएसजी का सबसे अहम सदस्य है और वह संवदेनशील तकनीकी के अंतरराष्ट्रीय कारोबार की निगरानी का सबसे बड़ा समर्थक देश भी है। यही नहीं एनएसजी के तहत जितना भी संवदेनशील तकनीक का हस्तांतरण होता है उसमें अमेरिका की हिस्सेदारी बेहद ज्यादा है। भारत को अब ये सारी तकनीक एनएसजी में शामिल हुए ही हासिल होगी क्योंकि अमेरिका ने उसे विशेष दर्जा दे दिया है। अधिकारी यह भी बताते हैं कि इससे भारत के लिए अब एनएसजी की सदस्यता का दावा करना भी आसान होगा।
गौरतलब है कि भारत पिछले कई वर्षों से एनएसजी का सदस्य बनने की दावेदारी पेश कर रहा है लेकिन चीन के विरोध की वजह से ऐसा नहीं हो पा रहा है। जबकि एनएसजी में शामिल 48 में से अन्य सभी सदस्य भारत की दावेदारी के समर्थन में है। एनएसजी की सदस्यता के लिए जरुरी है कि सभी सदस्य देश इसके लिए मंजूरी दे। भारत बिना चीन का नाम लिए कहता रहा है कि सिर्फ एक देश के विरोध की वजह से वह एनएसजी का सदस्य नहीं बन पा रहा। चीन की मंशा है कि भारत के साथ पाकिस्तान भी इसमें शामिल किया जाए। हालांकि पाकिस्तान को सदस्यता देने को लेकर अधिकांश देश तैयार नहीं है। भारत संवेदनशील हथियारों व तकनीकी पर प्रतिबंध लगाने के चार अंतरराष्ट्रीय समझौतों में से तीन (आस्ट्रेलिया ग्रूप, एमटीसीआर औऱ वासनार एग्रीमेंट) का सदस्य बन चुका है।