न्यूज डेस्क,अमर उजाला, नई दिल्ली, Updated Sat, 30 Jun 2018 05:33 PM IST
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!दिल्ली पुलिस की डीसीपी असलम खान लोगों के बीच एक नेक काम की वजह से मिसाल कायम कर रही हैं। वह हर महीने अपनी सैलरी का एक हिस्सा भारत-पाक बार्डर के पास बसे एक गांव के एक परिवार को भेजती हैं। यहां तक की वह रोज वॉट्सऐप ग्रुप पर गांव से उस परिवार की खबर लेती हैं और हर तीसरे दिन फोन कर हालचाल लेती हैं। इंसानी रिश्तों की इस कहानी को जानकर आप भावुक हो सकते हैं।
इनकी कहानी की शुरुआत एक मर्डर से होती है। साल के शुरुआत में 9 जनवरी की रात जहांगीरपुरी में ट्रक ड्राइवर सरदार मान सिंह (42) को लूट के लिए बदमाशों ने बीच सड़क पर मार डाला। बताया जाता है कि मान सिंह ट्रक को लेकर चंडीगढ़ से जा रहे थे और जहांगीरपुरी में रास्ता भटक गया था। रात में 2 बजे रास्ता पूछने के लिए वह ट्रक से उतरा था।
इस दौरान कुछ बाइक सवार बदमाशों ने उसे लूटने की कोशिश की। विरोध करने पर चाकू मार दिया। घायल हालत में खून से लथपथ सड़क पर ही तड़पता रहा और दम तोड़ दिया। मान सिंह अपने परिवार का अकेला कमाने वाला शख्स था। अब इस परिवार का सहारा डीसीपी असलम खान बनीं हैं। वह परिवार के बच्चों के लिए मां, पिता, दीदी, भाई जैसे रोल निभा रही हैं। मगर आज तक उन्होंने परिवार को रूबरू देखा नहीं है।
मान सिंह जम्मू-कश्मीर के आरएसपुरा सेक्टर में सुचेतगढ़ इंटरनेशनल बॉर्डर पर बसे फ्लोरा गांव के रहने वाले थे। उनके परिवार में 2 बेटियां बलजीत कौर (18), जसमीत कौर (14), बेटा असमीत सिंह (9) और पत्नी दर्शन कौर (40) रह गए हैं। उनकी बेटी बलजीत का कहना है कि करीब 150 घरों वाला फ्लोरा गांव बॉर्डर से 2 किलोमीटर दूर है। पाकिस्तान का सियालकोट शहर इस गांव से सिर्फ 11 किलोमीटर दूर है। 2 वक्त की रोटी के नाम पर 2 कैनल खेती है। वह दोनों देशों के बीच नियंत्रण रेखा में फंसी है। आए दिन मोर्टारों से कच्चा घर छलनी हुआ पड़ा है। पापा के मर्डर के बाद तो परिवार पर आफत आ गई।
जब इस परिवार पर मुसीबत आई तो डीसीपी असलम खान फरिश्ता बन गईं। बलजीत फिलहाल गांव से दूर बने स्कूल में 12वीं क्लास में पढ़ रही हैं। छोटी बहन जसमीत क्लास 9 और असमीत तीसरी क्लास में हैं। बलजीत बताती हैं कि पिता के न रहने से पूरी जिंदगी बदल गई। पापा को गए हुए 5 महीने हो चुके थे। 13 फरवरी को चाचा के बेटे की शादी थी। 9 जनवरी को शाम 7 बजे पापा से पांच मिनट के लिए आखिरी बार बात हुई थी। पापा बोले थे कि कल तक घर पहुंच जाऊंगा। उन्होंने 5 महीने में करीब 80 हजार रुपये जमा किए थे। एक उम्मीद जगी थी मकान को पक्का करा देंगे। सुबह हम सब खुश थे कि पापा आ रहे हैं। उसी दिन शाम को पता चला कि पापा का दिल्ली में मर्डर हो गया है।
बलजीत ने बताया कि पापा के मर्डर के बारें में दादी को जानकारी नहीं थी। 13 फरवरी को जब चाचा के लड़के की शादी में भी पापा नहीं दिखे तो दादी के सवाल बढ़ गए। जब उन्हें पता चला तो उन्होंने खाना-पीना छोड़ दिया। अगले ही महीने दादी भी नहीं रहीं। अब हमारी पढ़ाई, स्कूल की फीस जैसे तमाम चीजें सवाल बनकर खड़ी हो गई थी। एक दिन दिल्ली से डीसीपी मैम का फोन आया, उनको कही से पता चला था कि हमारे पास कुछ नहीं है। मैम ने कहा कि मैं हर महीने एकाउंट में पैसे डालूंगी। सरकार से भी मदद दिलाने की कोशिश करूंगी। हमने उन्हें मना भी किया, लेकिन वह नहीं मानीं। उनकी मदद से ही पढ़ाई और गुजारा चल रहा है।
हमारे लिए फरिश्ता
बलजीत ने कहा कि हमें नहीं मालूम है कि मैम के साथ हमारा क्या रिश्ता है। मगर वह हमारे लिए फरिश्ता हैं। हमने एक दूसरे को कभी नहीं देखा है। हम रोज चैट करते हैं और दूसरे तीसरे दिन खुद ही फोन करके हम लोगों से बात करती हैं। खासकर पढ़ाई के बारे में पूछती हैं। मेरी तमन्ना है कि मैं पुलिस अफसर बनूं। मन लगाकर पढ़ाई कर रही हूं। असलम मैम भी कहती हैं कि दिल्ली पुलिस में आना है तो अच्छे से पढ़ाई करो। मैं भी दिल्ली पुलिस जॉइन करूंगी।