क्यों एलर्जिक रायनाइटिस या एलर्जिक ज़ुकाम कोई मामूली बीमारी नहीं है

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एलर्जिक रायनाइटिस या एलर्जिक ज़ुकाम के इलाज के कई पक्ष हैं जो सैद्धांतिक रूप से तो बड़े आसान लगते हैं, लेकिन व्यवहार में इन पर अमल काफी मुश्किल हो सकता है

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इस कॉलम के तहत पिछले आलेख में हम एलर्जिक रायनाइटिस या एलर्जिक ज़ुकाम के बारे में कुछ बुनियादी बातें जान चुके हैं. अब उस विमर्श के बाद मूल मुद्दे पर आते हैं.

क्या एलर्जिक रायनायटिस को पूरी तरह खत्म किया जा सकता है? और इसका इलाज क्या है?
इसे लगभग कंट्रोल तो जरूर किया जा सकता है. इसकी तकलीफों को कम भी खूब किया जा सकता है. इसके बार-बार अटैक कम तथा हल्के किए जा सकते हैं, परंतु एलर्जिक रायनाइटिस का ऐसा समूल नाश कि फिर यह हो ही नहीं, ऐसा अभी तो संभव नहीं हो पाया है. लेकिन जैसा कि हमने बताया, इसे काफी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है. अब समझते हैं कि इसे कंट्रोल करने का इलाज क्या है.



 
एलर्जिक ज़ुकाम का इलाज चार सिद्धांतों पर टिका है :

(1) जिस पदार्थ से एलर्जी है उससे बचा जाये.
(2) शरीर के एलर्जिक रिएक्शन की प्रक्रिया को रोकने की कोई दवा दी जाये ताकि एलर्जिक पदार्थ के संपर्क में आने पर भी नाक तथा श्वास की नलियों में कोई एलर्जिक रिएक्शन पैदा न हो सके.
(3) ऐसी एंटी एलर्जिक दवा लेने के बाद भी यदि एलर्जिक प्रक्रिया हो ही जाये तो उसके लक्षणों को कंट्रोल करने के लिए कोई दवा (सिम्टोमेटिक इलाज) ली जाए.
और

(4) शरीर में एलर्जी के लिए जो संवेदना है (एलर्जिक टेंडेंसी), उसे किन्हीं विशेष टीकों द्वारा कम करना.
हम यहां ये चारों पक्ष आपको समझाएंगे ताकि आप यह जानें कि बेहद मामूली बीमारी समझे जाने वाले ज़ुकाम का इलाज वास्तव में कितना कठिन है.
एलर्जी वाले पदार्थों यानी एलर्जन (allergens) से बचाव


सिद्धांत रूप में तो यह बड़ा सटीक, सरल तथा सबसे ज्यादा प्रभावशाली इलाज प्रतीत होता है. ऐसा है भी. सही बात है कि जिस चीज से बीमारी पैदा हो रही है, यदि उसे ही अपने से दूर रख सकें तो हमें बीमारी होगी ही नहीं! यह कहना कितना आसान है, परंतु इसे कर पाना? यह काम बेहद चुनौतीपूर्ण और कठिन है. फिर भी कोशिश तो की ही जा सकती है.
कैसे?

समझें :
(1) सुबह के समय पौधों से सर्वाधिक परागण झरते हैं और यही अच्छी हवा चलने का समय भी होता है. यही वो समय भी होता है जब हम में से ज्यादातर लोग टहलने निकलते हैं. इस समय वातावरण में ये एलर्जन अधिकाधिक होते हैं. इनसे एलर्जी हो तो हमें सुबह-सुबह घूमने के बाद हर बार ज़ुकाम हो सकता है. यदि ऐसा हो तो पहले अपनी घूमने की जगह और समय बदल कर देखें. यदि फिर भी आप ठीक न हों तो फिर यह घूमना तजकर व्यायाम का कोई और ही तरीका अपनाएं.

(2) सुबह की हवा में ये परागण खुली खिड़की से भी घर में घुस आते हैं. ऐसे मरीजों को सुबह के समय अपने घर की खिड़कियों को बंद कर लेना चाहिए. ऐसे मरीजों को एसी में रहने से भी राहत मिल सकती है.
(3) यदि कोई पालतू जानवर घर में है तो उसके बाल और खाल के कण (animal danders) भी आपकी बीमारी का कारण हो सकते हैं.



 

कई कुत्ते तो इतने भाग्यशाली और परिवार के इतने आत्मीय होते हैं कि वे सबके साथ वहां बेडरूम में ही सोते हैं. हम यह समझते हैं कि हम तो अपने कुत्ते को बढ़िया साफ-सुथरा रखते हैं, नियमित नहलाते हैं फिर उससे हमें कोई बीमारी भला कैसे हो सकती है! यह सोच गलत है. आप यदि एलर्जन के लिए सेंसिटिव हैं तो आपको पालतू जानवरों से कई तरह की एलर्जी हो सकती हैं, जिसमें एलर्जिक रायनाइटिस भी शामिल है.
यदि आपको एलर्जिक रायनाइटिस है तो फिर कुत्ते के साथ कुत्ते टाइप ही व्यवहार करें. उसे अपनी गोद और बेडरूम से अलग करें. यदि तब भी समस्या न सुलझे तो कुत्ते से क्षमा मांगते हुये उसे घर से बाहर निकाल दें.

(4) गद्दों और तकियों पर कवर (गिलाफ) चढ़ाकर रखिये और इन्हें हर हफ्ते धोकर तेज धूप में देर तक पड़े रहने दीजिए. कमरों में गलीचे मत बिछाइये. हों, तो हटा दीजिए. घरों में मोटे पर्दे कभी-भी न लटकायें और पर्दों को नियमित वैक्यूम क्लीनर से साफ करते रहें. इन सबमें छिपी धूल की एलर्जी से बचने का और कोई स्थायी उपाय नहीं है. इस तरह की धूल से बचने में एयर प्यूरीफायर आदि का भी कोई रोल नहीं है.
(5) फंगस या फफूंद भी एलर्जी करने वाला एक महत्वपूर्ण एलर्जन है.

हमारे घर में फंगस कहां-कहां हो सकता है? बागवानी के शौकीनों की क्यारियों में और घर के बाथरूम की नम जगहों पर फंगस से आपका संपर्क हो सकता है. खिड़कियों की चौखट भी ऐसी ही एक जगह हैं. यदि आप एलर्जिक रायनाइटिस से परेशान हैं तो बागवानी का शौक तज दें. बाथरूम तथा खिड़कियों पर फफूंद न जमे इसके लिए नलों को लीक न होने दें, वहां सफाई रखें. फफूंद गलीचे में भी बहुत पनपती है. उससे भी निजात पा लें.


 

शरीर द्वारा एलर्जी की प्रक्रिया ही रोकने की कोई दवा नहीं होती है क्या?
होती हैं न. ये दवाएं एंटी हिस्टामिनिक दवायें कहलाती हैं. हमारे शरीर में एलर्जिक प्रक्रिया के दौरान हिस्टामीन नामक पदार्थ निकलता है जो नाक की झिल्ली पर मौजूद रिसेप्टर पर असर डालकर छींक आदि ज़ुकाम के लक्षण पैदा करता है. ये दवाएं इन हिस्टामिनिक रिसेप्टर को ही बंद कर देती हैं. इस तरह ज़ुकाम के लक्षणों पर कंट्रोल हो जाता है. सेट्राजिन वगैरह दवायें ऐसी ही दवायें हैं. ये स्थायी समाधान तो नहीं हैं, परंतु लंबे समय तक भी ली जा सकती हैं. इनको अपने डॉक्टर की सलाह अनुसार ही लें.

एंटी एलर्जिक दवायें लेने के बाद भी यदि कुछ तकलीफ बनी रहे तो और कौन-सी अन्य दवायें उपलब्ध हैं?

कुछ अन्य दवायें भी हैं जो एलर्जिक प्रक्रिया से होने वाली तकलीफों के सिम्टोमैटिक इलाज में सहायक हैं. हालांकि ये मात्र लक्षणों को कंट्रोल करके आपको फौरी राहत देने वाली दवायें हैं. ये तब खासतौर पर काम की हैं जब एंटीहिस्टामिन दवायें पूरी राहत न दे रही हों. इनमें से कुछ दवाएं नाक में डालने वाली होती हैं. इनकी बूंदों या स्प्रे को नाक में डाला जाता है. ये भरी नाक का कंजेशन कम कर देती हैं . इन्हीं दवाओं की गोलियां भी उपलब्ध हैं जिनको खाकर भी वही डीकंजेशटेंट का असर मिलता है. परंतु इनके साइड इफेक्ट्स भी होते हैं.

कोर्टिकोस्टेरॉयड्स का नाम आपने भी जहां-तहां खूब सुना होगा. ये बेहद बहुआयामी और प्रभावशाली दवाएं हैं जिनको अच्छे डॉक्टर भी इस्तेमाल करते हैं और झोलाछाप तो दायें-बांयें करते ही हैं. यह दवा इस बीमारी में भी सही मरीज में सही जगह बड़ी कारगर हो सकती है.

इसी कोर्टिकोस्टेरॉयड के नेज़ल स्प्रे उन मरीजों में बड़े असरकारक सिद्ध होते हैं जिन्हें मुख्य तौर पर नाक में बहुत खुजली होती हो और लगातार छींकें भी होती चली जाती हों. ऐसे लोग डॉक्टरी सलाह से ये स्टेरॉयड स्प्रे लें. बहुत फायदा होगा. हां, स्टेरॉयड के अपने बहुत से साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं सो इसे बिना डॉक्टरी सुपरविजन के कतई न लें. कुछ अन्य ऐसी ही दवायें और भी उपलब्ध हैं, पर वे सब सिम्टोमैटिक इलाज मात्र हैं.
क्या नाक में नॉर्मल सेलाइन डालकर इसे खोला जा सकता है?

करीब डेढ़ पाव पानी में चुटकीभर बेकिंग सोडा मिला दें. उससे नाक को अच्छी तरह से साफ करें. कोई भी नेज़ल स्प्रे या नेज़ल ड्रॉप्स डालने से पूर्व यदि नाक को नॉर्मल सेलाइन से साफ कर लें तो वे दवायें ज्यादा कारगर सिद्ध होंगी.

क्या ऐसे कोई टीके हैं जो इस एलर्जी को कम या खत्म कर दें?

इस सवाल का जवाब, हां और न दोनों है. ऐसे टीके ऑटोइम्यून थैरेपी के टीके कहलाते हैं.

इन टीकों को तैयार करने के लिये ऊपर वर्णित विभिन्न एलर्जन्स को मिलाकर इंजेक्शन तैयार किये जाते हैं. इनको यदि नियमित रूप से चमड़ी में महीनों तक बढ़ती मात्रा में लगायें तो कई बार एलर्जिक रायनाइटिस में बड़ा फायदा मिलेगा. यह ऑटो इम्यून थैरेपी कहलाती है.

हां, लेकिन एलर्जिक ब्रोंकाइटिस तथा अस्थमा भी साथ में हो तो ऐसी ऑटोइम्यून थैरेपी बहुत कारगर नहीं हो पाती. यदि केवल एलर्जिक रायनाइटिस ही है तो इसे जरूर ट्राई करें.

तो अंततः क्या समझे?

ज़ुकाम पर विमर्श फिलॉस्फिकल विमर्श टाइप होता है – बातें बड़ी-बड़ी और मामला जस का तस. अगर ऐसा लगे तो मैं क्षमाप्रार्थी हूं.