न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Updated Sat, 04 Aug 2018 01:31 PM IST
अमेरिका द्वारा सामरिक व्यापार प्राधिकरण-1 (एसटीए-1) का दर्जा पाने वाला भारत दक्षिण एशिया का पहला और एशिया का तीसरा देश बन गया है। भारत से पहले जापान और दक्षिण कोरिया को यह दर्जा मिल चुका है। अमेरिका ने इसके लिए शुक्रवार को अधिसूचना भी जारी कर दी। भारत के लिए अब अमेरिका से अत्याधुनिक हथियारों और उनकी प्रौद्योगिकी हासिल करने का रास्ता खुल गया है। साथ ही भारत को प्रमुख रक्षा साझेदार का दर्जा भी मिल गया है। इस अधिसूचना के बाद अमेरिका से भारत को ड्रोन विमानों समेत तमाम आधुनिक हथियारों के निर्यात पर से सरकारी नियंत्रण खत्म हो गया है।
एनएसजी पर चीन को कड़ा संदेश
अमेरिका ने भारत को यह दर्जा देकर चीन को एक कड़ा संदेश दिया है, क्योंकि जिस तरह से चीन हमेशा से एनएसजी में शामिल होने की भारत की मांग पर रोड़ा अटकाता रहा है, ऐसे में भारत को मिला यह दर्जा उसके मुंह पर जोरदार तमाचे की तरह है। अब भारत को वहीं सारी सुविधाएं मिलेंगी, जो एनएसजी में शामिल किसी देश को मिलती हैं। भारत को एसटीए -1 का दर्जा देकर अमेरिका ने यह स्वीकार किया है कि सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए भारत परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) के निर्यात नियंत्रण शासन का पालन करता है। यह दर्जा पाने वाला भारत अब दुनिया का एकमात्र परमाणु संपन्न देश बन गया है।
कैसे मिलता है एसटीए-1 का दर्जा
अमेरिका द्वारा किसी भी देश को एसटीए-1 का दर्जा तभी दिया जाता है जब वह चार प्रमुख संगठनों- परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी), मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (एमटीसीआर), वासेनार व्यवस्था (डब्ल्यूए) और ऑस्ट्रेलिया ग्रुप का सदस्य है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने एसटीए-1 का दर्जा पाने की ये शर्त रखी थी।
अमेरिका से नियमों में ढील के बाद भारत को मिला यह दर्जा
भारत ने एनएसजी को छोड़कर बाकी तीनों संगठनों की सदस्यता हासिल कर ली थी, लेकिन चीन की वजह से भारत को एनएसजी की सदस्यता नहीं मिल पा रही थी। इसके बाद ट्रंप प्रशासन ने भारत को अपना प्रमुख रक्षा साझेदार मानते हुए नियमों में ढील दी, जिसके बाद भारत को एसटीए-1 का दर्जा मिल गया।
एसटीए-1 के दर्जे से भारत को क्या फायदा
दरअसल, सामरिक व्यापार प्राधिकरण अमेरिका से बिना किसी लाइसेंस के अत्याधुनिक और संवेदनशील हथियारों के निर्यात की अनुमति देता है और भारत के लिए यह दर्जा बहुत फायदेमंद साबित है। दुनिया में कुल 36 देश ही इस सूची में शामिल हैं, जिनमें से अधिकतर नाटो समूह के सदस्य हैं। इससे भारत अब आसानी से अमेरिका से संवेदनशील हथियारों को खरीद पाएगा। इससे न केवल दोनों देशों के बीच पारस्परिकता की वृद्धि होगा बल्कि लाइसेंसों की स्वीकृति में जो समय बर्बाद होते थे, उनकी भी बचत होगी। साथ ही इससे रक्षा उपकरणों की जरुरत भी काफी कम कीमत पर पूरी की जा सकेंगी।