नई दिल्ली, योगेश शर्मा। खेल जगत में भारत की नई पौध लहराने और अपनी महक बिखेरने को तैयार है। हाल ही भारतीय जूनियर खिलाडि़यों ने शानदार प्रदर्शन करके ना सिर्फ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना लोहा मनवाया है, बल्कि इस बात का भी विश्वास दिलाया है कि खेलों में देश का भविष्य सुखद हाथों में है। एशियन चैंपियनशिप में भारतीय पहलवान सचिन राठी और दीपक पूनिया ने स्वर्ण पदक जीता तो वहीं बैडमिंटन में लक्ष्य सेन ने 53 वर्षो के बाद देश को एशियन चैंपियनशिप में सोना दिलाया। इन तीनों युवाओं की इस सफलता के बाद उनसे भविष्य की उम्मीदें संजोना लाजिमी है।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!पिता के संघर्ष से रोशन हुए दीपक
एशियन चैंपियनशिप में दीपक ने 86 किग्रा में तकनीकी श्रेष्ठता के आधार पर तुर्कमेनिस्तान के अजात गाजय्येव को मात दी थी। दीपक पूनिया गांव की मिट्टी में कुश्ती लड़कर भविष्य के अपने सपने बुनता था और उनके इन सपनों को बदलने और परिवार का गुजारा करने के लिए उनके पिता घर-घर जाकर दूध बेचते थे। दीपक पिता संघर्ष को नहीं भूलते हैं। हरियाणा के झज्जर के रहने वाले दीपक बताते हैं कि जब वह अपने गांव में कुश्ती लड़ा करते थे तो उनके पिता उनका खर्चा वहन करने के लिए ज्यादातर समय घर से बाहर रहते थे। पिता के संघर्ष से प्रेरित होकर दीपक ने ठान लिया था कि उन्हें परिवार का नाम रोशन करना है और उन्होंने जूनियर स्पर्धाओं में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतकर यह काम पूरा किया।
मैं सुशील सर के साथ जॉर्जिया गया था और उन्होंने वहां मुझे सीनियर स्तर पर तबीलिसी ग्रां प्रि में खिलाया, जहां मैंने कांस्य पदक जीता। इसका मुझे एशियन जूनियर चैंपियनशिप में फायदा मिला। मैं हमेशा अटैक करना पसंद करता हूं। मैं एशियाई देशों के ज्यादातर पहलवानों को हरा चुका हूं इससे मुझे जूनियर विश्व चैंपियनशिप में फायदा मिलेगा। मुझे उम्मीद है कि मैं वहां स्वर्ण जीतकर आऊंगा। दीपक इसी चैंपियनशिप में पहले भी एक स्वर्ण और एक रजत पदक जीते चुके हैं। साथ ही एशियन कैडेट चैंपियनशिप में रजत हासिल किया था। मैच में पूनिया के साथ भारतीय जूनियर कोच प्रवेश मान थे और उन्होंने कहा कि दीपक में गजब की फुर्ती है। वह भारत का ओलंपिक पदक का दावेदार है। वह टोक्यो ओलंपिक में खेलने भी जरूर जाएगा।
पांच साल पहले मां को खोने के बाद सचिन राठी के लिए आगे कुश्ती को जारी रखना मुश्किल था। दो साल पहले उन्होंने पिता को भी खो दिया। इसके बाद वह कुश्ती छोड़ना चाहते थे, लेकिन उनके बड़े भाई माटू ने उन्हें ऐसा करने नहीं दिया और सचिन को गुरु हनुमान अखाड़े भेज दिया। माटू चाहते थे कि सचिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वर्ण पदक जीतकर लाए और माता-पिता के सपने को पूरा करे। एशियन जूनियर चैंपियनशिप में फ्रीस्टाइल में भारत स्वर्ण पदक के लिए तरस रहा था तब राठी ने पीला तमगा हासिल कर भारत का राष्ट्रगान बजने का मौका दिया। उन्होंने 74 किग्रा में फ्रीस्टाइल में मंगोलिया के पहलवान बैट-एर्डेने ब्यामबासुरेन को हराकर पीला तमगा जीता।
सचिन ने बताया कि मेरी जिंदगी का सबसे दुखद दिन माता-पिता को खोना था, लेकिन मेरे बड़े भाई नहीं होते तो शायद मैं यहां तक नहीं पहुंच पाता। वह मेरे आदर्श है। उन्होंने मुझे इस अखाड़े में भेजा और पूरा खर्चा उठाया। मैं यह पदक जीतकर खुश हं लेकिन मुझे अभी आगे और जाना है। सचिन ने एशियन चैंपियनशिप में स्वर्ण जीतने का श्रेय गुरु हनुमान भारतीय खेल संस्था से जुड़े अंतरराष्ट्रीय पहलवान और भारतीय जूनियर टीम के मुख्य कोच महासिंह राव को दिया। सचिन ने बताया कि जब मैं यहां आया था तो इन सभी लोगों ने मेरे ऊपर अच्छा काम किया। मेरी ट्रेनिंग से लेकर मेरी फिटनेस पर इनकी निगाह थी। कोच राव फाइनल में भी मेरे साथ थे और जब मैं मैच में पिछड़ रहा था तो उन्होंने मुझे विपक्षी टीम के पहलवान को थकाने की रणनीति बताई जिसके बाद मैंने स्कोर करके मैच जीत लिया। उत्तर प्रदेश के बागपत के रहने वाले सचिन राष्ट्रीय चैंपियनशिप में तीन बार के स्वर्ण पदक विजेता हैं।
भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी लक्ष्य सेन का मानना है कि अगर किसी खिलाड़ी के लिए उसके परिवार का समर्थन मिल जाए तो वह अपने लक्ष्य को तैयार कर सकता है। उत्तराखंड के इस खिलाड़ी ने शीर्ष वरीय वितिदसर्न को 46 मिनट तक चले करीबी मुकाबले में 21-19, 21-18 से शिकस्त देकर एशियन जूनियर चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता था। उनसे पहले 1965 में गौतम ठक्कर ने जूनियर स्तर पर पुरुष सिंगल्स में भारत को पहली बार स्वर्ण पदक दिलाया था।
लक्ष्य ने बताया कि मेरे परिवार में ज्यादातर खिलाड़ी हैं। मेरे पिता बैडमिंटन खिलाड़ी रहे हैं। परिवार ने मेरा हमेशा साथ दिया, जिसके बाद मैंने इस खेल में अपने लक्ष्य बनाने शुरू कर दिए। मैं सात साल पहले बेंगलुरु में प्रकाश पादुकोण अकादमी में गया। वहां प्रकाश और विमल सर ने मेरी ट्रेनिंग पर ध्यान दिया। जब लक्ष्य से पूछा गया कि वह चोट से परेशान होकर एशियन चैंपियनशिप में खेल रहे थे तो उन्होंने बताया कि मुझे चैंपियनशिप से पहले पैर में चोट थी जिसका इलाज मैंने करा लिया था। मेरे साथ यहां फिजियो भी आए थे तो उनकी देखरेख में मैं मैच खेलता रहा।
फाइनल में मुझे कोच ने बताया था कि विपक्षी खिलाड़ी की मजबूती और उसकी कमजोरी के हिसाब से खेलो और मैं वैसे ही खेला और पदक जीतने में कामयाब रहा। 16 वर्षीय लक्ष्य को अब जूनियर से सीनियर में खेलने का मौका मिलेगा। वह अगले महीने शुरू होने वाले वियतनाम ओपन में खेलने जा सकते हैं। उन्होंने बताया कि जूनियर से सीनियर स्तर पर खेलने के लिए मुझे सबसे पहले अपनी फिटनेस पर काम करना है। मेरे लिए यह एक नई चुनौती होगी लेकिन मैं इसके लिए तैयार हूं।